दुबारा-deepti-singh
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#newStory #दुबारा

आज वैसे ही बहुत देर हो चुकी क्लास के लिए कीर्ति जल्दी से अपनी किताबों को समेटतीं है, जो लाइब्रेरी की मेज़ पर बिखरीं हुई है। वो जैसी ही किताबों को हाथ में लिए मुड़ती है। एक दम से किसी से टकराती है, देखकर नहीं चल सकते। I’m sorry….मैं आपकी हेल्प कर देता हूँ। मैं अपनी किताब में मसरूफ था। मैंने आपको देखा नहीं। वो आवाज़ कीर्ति को बहुत जानी पहचानी लगती है। वो जैसे ही सामने देखती है, वो कुछ समझ नहीं पाती और जल्दी से लाइब्रेरी से बाहर आ जाती है। क्या ये वही था। इतने सालों बाद वो मेरे सामने था। ऐसे कैसे वो वापस आ सकता है।आख़िर क्या हुआ जो वो वापस आया। क्या उसने मुझे पहचान लिया? क्या वो मेरे लिए वापस आया है।अगर उसने मुझे पहचान लिया तो मुझे रोका क्यों नहीं, कुछ बोला भी नहीं। क्या उसे आज भी सब बातें याद है। कितना बदल चुका है वो…….. क्यों आज वो वही मिला इतने साल बाद जहाँ सब शुरू हुआ….जैसे ही जाने कितने सवाल कीर्ति के मन में चल रहे थे।

कीर्ति की नज़रों के सामने वो सभी पल आ जाते है…जो उसने कभी उसके साथ बिताए थे। वो लम्हे जो आज भी उसकी यादों में नए है। उसकी ज़िन्दगी की किताब के कुछ बेहद ख़ास और ख़ूबसूरत लम्हे। जिन्हें वो अक्सर याद कर ख़ुश हो जाया करती थी।

आज वो वजह सामने थी पर वो कुछ कह ना सकी……

जाने आँखों से नींद कहाँ चली गयी है। बार बार वही चेहरा आँखों के सामने आ रहा है। कीर्ति बेचैन होकर उठती है। ड्रॉ से एक डाइअरी निकालती है।

कीर्ति डाइअरी के पन्नो को जैसे ही पढ़ना शुरू करती है, उसका फ़ोन बजता है। कॉल किसी अपरिचित नम्बर से है, इतनी रात को कोई उसे क्यों कॉल करेगा। तो कॉल का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझती।लेकिन कॉल बार-२ आने की वजह से उसे लगता है कि कोई इमर्जेन्सी तो नहीं। कहीं घर से कॉल तो नहीं वैसे भी ज़िन्दगी में क्या हो जाए। कुछ पता नहीं होता।

कीर्ति- हेलो

अपरिचित- हेलो

(कीर्ति आवाज़ सुन कर चौंक जाती है। थोड़ी देर के लिए फ़ोन पर एक अजीब सी ख़ामोशी छा जाती है, सिर्फ़ साँसे की आवाज़ सुनाई दे रही। जिससे पता है, कि फ़ोन पर कोई है।)

अपरिचित- हेलो, कीर्ति…..तुम सुन रही हो ना। तुमसे बात करना चाहता हूँ।

मैं जानता हूँ, तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो।

कीर्ति- आप कौन बोल रहे हो।

अपरिचित- क्या तुमने सच मैं मुझे नहीं पहचाना। आज तुम लाइब्रेरी से भी ऐसे चली गयी। जैसे तुम मैं कोई अजनबी था।

कीर्ति- आपने अपना नाम नहीं बताया।( कीर्ति की धड़कन तेज़ हो रही थी)

अपरिचित- अगर तुम्हें मुझसे ये सवाल करना पड़ा। इसका मतलब ये है, कि तुम वो सब भूल चुकी हो। जो भी हमारे बीच था।

कीर्ति- मैं नहीं जानती, आप क्या बात कर रहे है। आपको कोई काम है तो बताए। अपना नाम भी……

अपरिचित- माफ़ कीजिए…. शायद आपसे बात करने में सच में काफ़ी देर कर दी मैंने। इतनी रात को कॉल करके परेशान करने के लिए माफ़ी चाहता हूँ।

कीर्ति- परेशान कर चुके है, नाम भी बता दीजिए। आपको मेरा नम्बर कैसे मिला। वैसे सही कह रहे है आप, सच बहुत देर हो चुकी।

कॉल अचानक कट हो जाता है……

क्या मैंने उससे ऐसे बात करके सही किया। कितने सवाल पूछने थे उससे। आज भी उसकी आवाज़ बिलकुल वैसी ही है। आज भी उसमें वही अकड़ है। उसकी ये ही ख़ूबी तो मुझे पसंद थी।उसका वो हर बात को बेपाकि से कहना। जितना ग़ुस्से वाला दिखता था, उतना ही शांत।

कीर्ति वापस से डाइअरी को खोलती है…….


आज उसको कॉलेज की लाइब्रेरी में देखा। हर वक़्त उसके चेहरे पर ग़ुस्सा ही दिखता है। जाने घर से क्या खाकर आता है। मैंने उसे कभी हँसते नहीं देखा। उसको हँसते हुए देखना अब तो मेरी दुआ है। शायद जिस दिन हँसे उस दिन मैं उसके सामने जा पाऊँ।

आज कितने दीनों के बाद उसका नाम पता चला है। नाम से लगता है, हम एक दूसरे के पर्यावाची है…कीर्ति और वैभव।।

आज लाइब्रेरी में जल्दी में किताबें ले जाते समय वैभव से टकरा गयी। धड़कन इतनी तेज़ थी उसे सामने देखकर। समझ ही नहीं आ रहा था क्या कहूँ। वो किताबें उठाने के लिए झुका और मैं वहाँ से भाग आयी।ऐसा क्यों किया मैंने, ये मैं अभी भी नहीं समझ पायी।शायद मुझे ख़ुद नहीं पता ये प्यार है या सिर्फ़ एक आकर्षण जो उसकी पर्सनैलिटी और व्यवहार से प्रभावित है। उसको कॉलेज के पहले दिन देखा था, जब सीन्यर रैगिंग के लिए आए थे। वो उनके साथ था, तब मुझे वो कॉलेज का गुंडा लगा था। लेकिन धीरे-धीरे ना जाने कब वो अच्छा लगने लगा। मेरी रूममेट्स को अक्सर कहते सुना है। वो कॉलेज बहुत कम आने की बाद भी जाने कैसे इतने अच्छे नम्बर से पास हो जाता है।

आज भी वो पल मेरी आँखों में आज सा बसा है, उस दिन में लाइब्रेरी में अकेली बैठीं थी। किसी ने बताया कि वैभव ने कॉलेज किसी लड़की को प्रपोज़ किया है। ख़ुद पर बहुत ग़ुस्सा था, हॉस्टल जाकर बहुत रोना चाहतीं थी। लेकिन क्लैसेज़ ओवर होने से पहले हॉस्टल जाने पर सौ सवाल होते। जिनका जवाब देने का मन नहीं था।इसलिए लाइब्रेरी में शांत बैठना अच्छा लगा। वैसे भी आज शनिवार है, तो mostly स्टूडेंट नहीं आते।

मैंने जब नज़र उठाकर देखा तो वैभव मेरे सामने बैठा हुआ था। पहले मुझे लगा शायद उसे इतना याद किया है, इसलिए वो दिख रहा है। लेकिन जब उसने कहा….कीर्ति..Are you ohk? तो जैसे मेरी नींद खुली हो।

Yes sir….

वैभव- तुम से कुछ बात करनी है…

कीर्ति- yes sir…

वैभव- मुझे प्लीज़ सर मत कहो…

कीर्ति- yes sir

वैभव- हँसते हुए… कोई नहीं। तुम इतना डरी हुई क्यों हो?

कीर्ति- मन में….o God आपने तो मेरी दुआ क़बूल कर ली) ये हँसता भी है। हँसते हुए ज़्यादा क्यूट लगता है। अगर ये यहाँ से जल्दी नहीं गया तो मैं कुछ कह ना दूँ।

वैभव- कीर्ति…क्या हुआ? कहाँ खो गयी? क्या मैंने कोई ग़लत सवाल पूछ लिया क्या?

कीर्ति- नहीं सर…मैं बिलकुल ठीक हूँ। वो बस इग्ज़ाम आने वाले है। उसकी टेन्शन है थोड़ी।

वैभव- इग्ज़ाम की टेन्शन अभी से पूरा १ महीना है। so chill….

अकेली लाइब्रेरी में बैठी हो… किसी को याद कर रही हो क्या?

कीर्ति- मन में…जिसे याद करना था वो किसी और का हो चुका।

नहीं सर….ख़ुद से ख़ुद की खेरियत पूछ रही थी। उसके लिए ये शांति चाहिए थी।

वैभव- मतलब?

कीर्ति- आप नहीं समझोगे….वैसे सर आपने पार्टी नहीं दी।

वैभव- पार्टी किस बात की?

कीर्ति- कॉलेज में सब को पता है, आपको किसी लड़की से प्यार है। आपने उसे आज प्रपोज़ भी कर दिया। I’m sure उसने हाँ ही कहा होगा….

वैभव- अच्छा, तुम इतने यक़ीन से कैसे कह सकती हो।

कीर्ति- आप है ही इतने हैन्सम….सॉरी means अच्छे स्मार्ट, कॉलेज के multitalented boy….

थोड़ा अजीब है, आपने अब किसी लड़की को प्रपोज़ किया। कोई वजह सर?

वैभव- थैंक्स, तुम्हारी तारीफ़ के लिए… लड़की बहुत है। पर वो अब मिली जिसकी मुझे तलाश थी।

कीर्ति- कैसी है… वो सर। कैसी लड़की की तलाश थी आपको?

वैभव- बाक़ी लड़कियों से अलग…कुछ अलग सी सोच वाली, बिंदास, चुलबुली पर तेज़।

कीर्ति- ऐसी लड़की मिलना थोड़ा मुश्किल होता। लेकिन आप लकी है, आपको वो लड़की मिल गयी जो आप चाहते थे।

(जाने क्यों ये सब बातें मुझसे कर रहे है, क्या इतना भी समझ नहीं आ रहा। मुझे ये सब पसंद नहीं आ रहा)

वैभव- हाँ… I’m lucky..तुमने सही कहा। लेकिन उसका जवाब अभी तक मिला नहीं है। वैसे तुम मेरी हेल्प करो। अगर वो हाँ कर दे, तो उसे क्या गिफ़्ट देना चाहिए।

कीर्ति- जो आपको प्यार से देना हो। मैं चलती हूँ। क्लास का टाइम हो गया।( ग़ुस्से से)

कीर्ति उठकर चलने लगती है और किताब को वापस रॉ में लगाने जाती है। वैभव उसको हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खिंचता है। जिससे रॉ में लगी किताबें गिर जाती है। लाइब्रेरी शोर से गूँज जाती है…. लायब्रेरीयन को उठकर आते देख। वैभव कीर्ति को लाइब्रेरी की दूसरी श्रेणी में ले जाता है।

कीर्ति- सर, मेरी क्लास के लिए देर हो रही है। आप मुझे ऐसे कैसे अचानक अपनी तरफ़ खींच सकते है। लायब्रेरीयन ने देख लिया होता तो मेरी कम्प्लेंट हो सकती थी। मुझे गिफ़्ट के बारे में सच में नहीं पता। आप सीन्यर है, इसका मतलब ये नहीं मैं कुछ नहीं कहूँगी। अगर ये लाइब्रेरी नहीं होती तो आपको थप्पड़ की आवाज़ भी आती।

वैभव उसको देखता रहता है…क्या तुम मुझसे प्यार करती हो?

कीर्ति-  चौंकते हुए….ये कैसा सवाल है?

कीर्ति मुझे घुमाकर बातें करनी नहीं आती, इसलिए सीधा पूछ रहा हूँ। क्या तुम्हें मुझसे प्यार हैं। वैसे मैं सब जानता हूँ, लेकिन तुमसे पूछना चाहता हूँ।

कीर्ति वहाँ से जाने लगती है…. वैभव उसे वापस रोक लेता है। कीर्ति वैभव की बाँहों में है…लेकिन एक क़ैदी जैसी। कीर्ति तुम जवाब देकर जा सकती हो। वापस कभी नहीं पूछूँगा।

आप को थोड़ी शर्म नहीं आती, किसी और लड़की को प्रपोज़ करने के बाद अगर उसने जवाब नहीं दिया तो किसी और पर ट्राई।

मैं आपको बहुत अलग और अच्छा समझती थी। प्लीज़ आप उसी लड़की से बात करे। मैं आपसे प्यार नहीं करती। आपको कोई ग़लतफ़हमी हुई है। अब उस लड़की के जवाब का इंतज़ार करो।वैसे अब मुझे लगता है, उसे हाँ नहीं करना चाहिए। अगर मुझे पता हो वो लड़की कौन है। मैं ख़ुद मना कर दूँ उसे। अगर वो ज़िन्दगी में ख़ुश रहना चाहती है, तो तुमसे प्यार ना करे।

थैंक्स….उस लड़की ने मना कर दिया। मतलब…..कीर्ति फिर से चौंक जाती है।

वैभव ग़ुस्से से- तुम इतनी पागल हो या फिर जान बूझ कर इतनी पागल बन रही हो। तुम्हें समझ नहीं आया वो लड़की तुम हो। तुम्हें ही प्रपोज़ करने वाला था। तुमने माना कर दिया। वैभव कीर्ति को छोड़ देता है। I’m sorry…तुम जाओ।

फिर जो कॉलेज में सब लोग कह रहे है, तुम किसी लड़की को प्रपोज़ कर चुके वो क्या था। वो मेरे दोस्तों का प्लान था। तुमसे सच बुलवाने का यही तरीक़ा था। लेकिन तुम्हें तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। तुम मुझसे प्यार नहीं करती।

कीर्ति बहुत ख़ुश हो जाती है…stupid तुमसे प्यार करती हूँ। कितना ग़ुस्सा आ रहा था मुझे। तुम्हें दिखा नहीं।( कीर्ति मन ही मन बहुत ख़ुश होती है)

वैभव वहीं रुक जाता है, वापस पलटता है। नहीं, मैं अब किसी और लड़की को प्रपोज़ करूँगा। क्योंकि मैं यही करता हूँ। तुम प्यार नहीं करती तुमने थोड़ी देर पहले कहा। कीर्ति ग़ुस्से से….तुम किसी को कुछ नहीं कहोगे।

वैसे तुम्हें कैसे पता चला, मैं तुम्हें प्यार करती हूँ। मुझे पता तो बहुत पहले से था लेकिन जब लाइब्रेरी में टकराई और बिना कुछ कहे एक अजीब सी मुस्कुराहट के साथ वहाँ से चली गयी तो मुझे थोड़ा पता करना पड़ा।

वैसे सच ये भी है कि मैं तुम्हें पहले दिन से चाहता हूँ। जब तुम्हें क्लास में सीन्यर से पंगा लेते हुए और लड़कियों के लिए लड़ते हुए देखा था। तुम तभी मुझे पसंद आ गयी थी। लेकिन कहने की हिम्मत कभी नहीं हुई।

अगर मैं किसी और को हाँ कार देती तो….वैभव कीर्ति को अपनी बाँहों में ले लेता है। ऐसे कैसे तुम किसी और की हो जाती। वैसे तुम्हें कुछ देना था। क्या? कीर्ति शर्माते हुए पूछती है। आँखें बंदकरो….नहीं।जो देना है..आँखें खुली रहने पर दो। ठीक है, आँखें बंद मत करना फिर… वैभव कीर्ति की पास खींचता है और लीप किस कर देता है। कीर्ति को समझ नहीं आता कि अचानक हुआ क्या। वो पीछे किताबों की रॉ से टकरातीं है। सभी किताबें गिरने लगती है। तब कीर्ति वहाँ से चली जाती है। वैभव को लगता है, शायद कीर्ति को बुरा लगा। रात में कीर्ति का फ़ोन रिंग करताहै…unknown.

कीर्ति- हेलो…

Unknown- हेलो

कीर्ति- कौन बोल रहा है।

Unknown- I’m sorry…मैंने शायद तुम्हें नाराज़ कर दिया। मुझे तुम्हें ऐसे पहली बार में किस नहीं करना चाहिए था।

कीर्ति- तुम बोल रहे हो।

Unknown- हाँ…..

कीर्ति- वैभव, तुम्हें नम्बर कैसे मिला।

वैभव- नम्बर पता करना बहुत बड़ी बात नहीं है। पर तुमने जवाब नहीं दिया।

कीर्ति- हाँ…नाराज़ हूँ, क्योंकि तुम्हें किस करना नहीं आता।

वैभव- ये तो सच है…तुम हो ना सीखा देना।

कीर्ति- हाँ…सीख जाओगे। वैसे लाइब्रेरी में ही सीखोगे।

वैभव- हाँ…तुम भी वही मिली और ज्ञान भी वही मिलेगा।

कीर्ति- हँसते हुए….मज़ाक़ बहुत हुआ। कल बात करते है। रात बहुत हो चुकी।

वैभव– good night…sweetheart

कीर्ति- good night…लेकिन में इतनी भी स्वीट नहीं हूँ।

वैभव- मुझे तो टेस्ट करने में तुम मीठी ही लगी। शायद लीपबाम का टेस्ट होगा।

कीर्ति- good night..



कीर्ति और वैभव हर रोज़ लाइब्रेरी में ज़्यादा और क्लास में कम दिखने लगे। हर रोज़ लाइब्रेरी में ही घंटो बैठें रहना…और लोगों के होने पर सामने बैठकर मेसिज में बात करना नया ट्रेंड बन गया था। जाने कब एक साल पूरा हो गया। ये वैभव का लास्ट ईयर था और कीर्ति का २nd ईयर। कीर्ति अक्सर वैभव से पूछती थी। वो इसके बाद कैसे रहेगी, और वैभव उसे ये बोल कर ख़ुश कर देता कि वो इसी कॉलेज में लेक्चर की जॉब करेगा। कीर्ति कही ना कही जानती थी वो वैभव को अपने प्यार की वजह से कैरीयर में आगे बढ़ने से नहीं रोकेगी।

आज भी अच्छे से याद है…मेरा रिज़ल्ट आना था। मैं वैभव को सुबह से कॉल कर रही थी। लेकिन उसका फ़ोन switch off था। उसके दोस्तों से पता किया तो पता चला वो घर चला गया। लेकिन उसने जाने से पहले एक कॉल भी नहीं किया। क्या सब ठीक है। क्या हुआ होगा। जो बिना कूच कहे चला गया। जब शाम को बात हुई सब ठीक था। कीर्ति बहुत बेचैन सी इधर उधर कमरे में घूम रही होती है। तभी उसकी रूममेट उसे बताती है कि वैभव हमेशा के लिए चला गया है। उसकी जॉब लग गयी। मैंने उसके दोस्तों को आपस में बात करते सुना। वैभव ने तुझे बताने के लिए मना किया था। तभी एक अजीब सा शोर और होता है।

अलार्म बजने से…कीर्ति की नींद खुलती है। रातें में जाने कब नींद लग गयी।

सुबह के ६ बजे है….शायद डाइअरी पढ़ते हुए कब नींद लग लग गयी। पुरानी ज़िन्दगी से एक रात में वापस से जी ली मैंने। सब कुछ वैसे ही ख़ुद को दोहरा रहा है। वो इतने २ साल कहाँ था। आज कैसे वापस आया। वो वैभव के कॉलेज में आने की वजह से कॉलेज से छुट्टी लेने का मन बनाती है।

एक बार फिर उसकी वो यादें अब ताज़ा हो गयी थी, जिन्हें वो रोज़ भुलाकर आगे बढ़ने की सोचती थी।

जब वो साथ था, दिन कब बीत जाता था पता ही नहीं चलता था।उसके जाने के बाद कैसे दिन बीते है..

“ख़ुद को किसी में खो देने का मतलब बेशक इश्क़ है, लेकिन इश्क़ से ख़ुद को पाना बहुत ही मुश्किल होता है”

कीर्ति के घर की घंटी बजती है, ये समय दूध वाले आया होगा। वो जैसी ही दरवाज़ा खोलती है, दूध वाले के साथ वैभव भी खड़ा होता है।

दूधवाला- मैडम, ये आपका नाम पूछकर आपका घर ढूँढ रहे थे। वो तो हमें मिल गए हम इन्हें यहाँ ले आए।

कीर्ति दूधवाले के सामने वैभव को कुछ नहीं कहती। तुम हॉस्टल से यहाँ कब शिफ़्ट हुई। वैसे अच्छा area है। तुम्हारे साथ कोई और लड़की भी रहती है,क्या? वैसे तुम कैसी हो। तुम्हारा पता कॉलेज से मिला। अब थोड़ा मुश्किल हो गया है, कॉलेज से इन्फ़र्मेशन निकलवाना। कीर्ति बिलकुल चुप रहती है, वो वैभव के किसी सवाल का जवाब नहीं देती। तुमने कल रात को कॉल पर कुछपर बार बार पूछा कौन तो सोचा तुम्हें मिल कर बताऊँ। आप मुझे बता चुके है। अब जा सकते है। यहाँ पर लड़कों का आना मना है।

वैभव- क्या तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई और आ गया है।

कीर्ति- तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। तुम्हें ये जानने का हक़ नहीं है।

वैभव- कीर्ति मैं मानता हूँ, मेरी ग़लती थी। मुझ में हिम्मत नहीं थी। तुमसे ये कहकर जा सकूँ कि तुमसे दूर जाना है। घर की ज़िम्मेदारियों ने मुझे आगे बढ़ने के लिए कहा।

अगर तुम्हें बता कर जाता तो शायद तुम्हारे वो आँसू नहीं देख पाता।

कीर्ति- तुम मुझे शायद इतना ही जानते थे। मुझे लगता था, हम एक है। तुम मुझे समझते थे। तुमने यहाँ भी ग़लत साबित कर दिया। अब कुछ और मत कहना। वरना तुम्हारे लिए इज़्ज़त भी ख़त्महो जाएगी।

वैभव- एक सवाल का जवाब चाहता हूँ….क्या तुम मुझे आज भी प्यार करती हो।

कीर्ति- नहीं…..अब बहुत देर हो चुकी। वो कीर्ति कोई और ही थी जो तुम्हें ख़ुद से ज़माने की हदों से ज़्यादा चाहती थी।

वैभव- अगर प्यार नहीं तो तुम लाइब्रेरी से मुझे देखकर चली क्यों गयी। आजतक तुम्हारी ज़िन्दगी में कोई और क्यों नहीं आया। तुम आज भी उन लमहों को संभाल कर क्यों बैठीं हो। अगर प्यार नहीं तो मुझे क्यों सुन रही हो। तुमने मुझे अभी तक थप्पड़ क्यों नहीं मारा।

क्या तुम वो सारे प्यार भरे लम्हे इतनी आसानी से भूल गयी। जो हमारे थे। क्या मेरी ग़लती इतनी बड़ी थी कि मैं तुम्हें वापस नहीं पा सकता।क्या मैंने अपने घर की ज़िम्मेदारियों में अपना प्यार खोदिया।

कीर्ति- वैभव please तुम यहाँ से चले जाओ। क्योंकि मैं तुम्हारे सवालों का जवाब नहीं दे पाऊँगी। ना तुमसे कोई सफ़ाई चाहती हूँ।

वैभव- कीर्ति की तरफ़ बढ़ता है…

कीर्ति पीछे हटतीं जाती है, वैभव हर क़दम पर….क्या तुम प्यार नहीं करती..नहीं..कीर्ति की साँसे धीरे-धीरे तेज़ होती जाती है। क्या तुम सच में मुझे भूल गयी…हाँ..कीर्ति और पीछे हट जाती है।क्या तुम्हें अब कुछ भी याद नहीं…वैभव फिर कीर्ति की तरफ़ बढ़ता है। अब कुछ भी याद नहीं। अगर नहीं याद तो ये साँसे आज भी पहले दिन सी तेज़ क्यों है। अगर प्यार नहीं तो नज़रें झुकीं हुई क्यों है। कीर्ति दीवार से टिक जाती है। वैभव बिलकुल उसके सामने है। उसकी साँसे वैभव के शब्दों से टकरा रही है।अब भी कुछ याद नहीं….कीर्ति आँखें बंद कर लेती है…नहीं। क्या अब तुम वोसब नहीं देखना चाहती जो होगा। या अब डरने लगी हो सच से। कीर्ति आँखें खोलती है….वैभव को पीछे की तरफ़ धक्का देती है।

ख़ुद को सम्भालते हुए कहती है….हाँ तुमसे प्यार नहीं, कुछ भी याद नहीं। तुम ये सब करके क्या साबित करना चाहते हो।

वैभव हँसते हुए…ठीक है, तुम प्यार नहीं करती तो ये सब क्या है। तुम्हारे गाल इतने लाल क्यों है। तुम्हारी इतनी लड़खड़ा क्यों रही है।

कीर्ति मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाने आया हूँ। अगर इस बार चला गया तो कभी वापस नहीं आऊँगा। तुम इतना तो मुझे जानती हो।

लेकिन एक सच कहता हूँ, एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब तुम्हें याद ना किया हो। तुम ग़ुस्सा भी कर सकती थी लेकिन मैं किसी से कुछ नहीं कह सकता था।

“मेरा इश्क़ तेरा था तेरा ही रहा,

ना मैं किसी को चाह सका,

ना ये किसी का हो सका।।

वैभव घुटनो पर बैठ जाता है और उसकी आँखों में आँसू होते है। कीर्ति इस पल का रोज़ इंतज़ार किया है मैंने। अपने वैभव को माफ़ कर दो। हम पहले शादी करेंगे। क्या तुम मेरी साँसे मुझेवापस दोगी। मेरी ज़िन्दगी को जीने की वजह वापस कर दो।

“इश्क़ को जाना जब तुम्हें जाना

कैसे भूले सब ये ना सीख पाए”

वैभव तुमसे प्यार पहले भी था आज भी। कितनी लड़कियाँ पटाई है ऐसे। तुम अच्छे से जानते थे, मैं तुमसे मिल कर सब भूल जाऊँगी।प्यार को साबित करने के लिए तुम्हें ना शादी करने के लिए मैंने तब कहा था, ना आज कहती हूँ। सिर्फ़ चाहती हूँ, तुम अपना सुख दुःख मुझसे साझा करो। कभी डर ना हो कोई बात छुपानी नहीं पड़े।

कीर्ति के इतना कहते ही…वैभव उसे किस करने के लिए आगे बढ़ता है। कीर्ति उसे रोक देती है। क्या किस करना सीख गए। हँसते हुए हट जाती है। वैभव उसे किस करता है। कीर्ति की आँखों मेंआँसू होते है। वैभव तुम किस करना सीख गए।

I missed you so much……



A writer having expertise in writing Multiple Domains. An Enthusiastic writer with a passion for Reading and writing. A Dedicated Reader and Multi Dimension Writer in WEXT India Ventures. I'm creating highly informative content for WEXT India Ventures about Entrepreneurship and Shark Tank India.

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