भगत-देश-का-फिर-लौटेगा
0

तुम काहे को रोये थे प्रियवर,
भगत सिंह स्वदेश पर मरता था।
जब चुमा फंदा फांसी उसने,
तब कितना गदगद वो दिखता था।

सात सितंबर , सन् सताइस को,
एक गांव “बंगा” में जन्मा था।
क्रान्ति विचार विरासत थी उसमें,
ख्वाब ,चाचा स्वर्ण-अजीत का था।

था ‘डायर हत्यारा’ जलियाँ का,
कैसे शान्त भगत रह सकता था।
निर्दोष लहू जब चीख रहा हो,
इन्कलाबी उसे तो होना था।।

पिता किसन सिंह विवाह की सोचे,
तब उसको ऐसा नहीं जचता था।
घर छोड़ा, थी राह आजादी जब,
वह भीष्म कर्म पथ कैसे तजता।

नौंजवाँ संगठित कर कोटला में,
सुखदेव-राजगुरु का साथ मिला।
उन दीवानों ने शपथ उठाई,
तुझे स्वतंत्र करेंगे भारत माँ।

कानपुर था महाकेंद्र क्रांति का,
जहाँ मिला शेर कई शेरों से।
जब रेल “काकोरी” में लूटली,
तो घमण्ड हिल गया अंग्रेजों का।

“हिंन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक”
नाम देकर “चीफ आजाद” चुना।
‘साइमन गो बैक’ भय से कर ले,
पर बम की ‘जद’ मे मार्कंडय पड़ा।

जो काँड ‘साइमन’ का हो जाता,
शायद ‘लाजपत राय’ बच जाता।
क्यों लाला हत्या का बदला फिर,
‘साँडर्स’ हत्या से लिया जाता

मौषम अगर बलिदान का होगा,
होगा वीर, लहू तो खौलेगा।
माँ हो बेडी में, टपकें आँसू।
सौ बार मिटूँ, मन डोलेगा।।

वो वीर लक्ष्य से कब डिगते थे,
अर्जुन सी ‘साध’ सभी रखते थे।
नयन शेष-लुप्त खग् काया,
वो चेतन दृष्टि ‘अरि’ पर रखते थे।

‘सेफ्टी बिल’ पर जहाँ थी चर्चा,
‘दुनियाँ समझे’ तब किया धमाका।
निर्भय वहीं पर्चों को उछाला,
उसने ‘हक अदा’ वतन कर डाला।

घुसकर संसद में बम फोड़ा था,
‘बन्देमातरम्’ हिंद बोला था।
अंग्रेजी शासन डोल चुका था,
फिरंगी पसीना पौंछ रहा था।

कभी खेल में बोई थी पिस्टल,
पिस्टल ही जीवन भर झेला था।
क्या पता था गोंरो संग होली,
एक दिन बम से भी खेलेगा।

एक सौ चौदह दिनों तक जेल मे,
कुव्यवस्था पर भगत भूखा था।
भूखे शेरों को देख-देख कर,
क्रूर फिरंगी होता गीला था।

वतन पर जाँ देते सिरफिरौशी,
फिर अंजाम से कहाँ डरते थे।
बस जज्बा था दिल मे कुर्बानी,
कभी पग पीछे नही हटते थे।

शूली चढ़ जायें, किसको डर था,
“तय दिन” बदला, गोरों को भय था।
क्या बोझ गुलामी सोने देती,
यूँ जीने से मरना अच्छा था।।

मार्च तेईस-सन् इक्तिस की थी,
था समय ,सात की संध्या काली।
शूली- ‘भगत, राज, सुखदेव’ चढ़ा,
फिर लाश काट बोरों में डाली।

‘गुप्त’ ले गए वह दुष्ट फिरंगी,
फिर टुकडों पर घाँसलेट डाला।
हुसैनी पुल, सतलुज तट पर फूंका,
ऐ मानवता तुझे कुचल डाला।

सुन कर सीना फटा, अश्रु न थमें,
चूहले बुझे और नींद उड़ गई।
क्रोध-शोक का मंथन लिये मन मे,
फिर कोटी उठे ज्वाला बन रण में।

तूफान उठा, लपटें में भड़की थी,
चिंगारियाँ भी शोले दिखती थी।
सब गर्ज उठे विकराल काल से,
गुलामी कहां तू जिंदा रहती।

वीर ठान लें ‘करना’- हैं करते,
जलते हैं, कांटों पर चलते हैं।
वह लक्ष्य नहीं तजते संकट में,
फतह होंसलों से ही करते हैं।

तुम अल्पायू मत देखो उसकी,
दीर्घायु से रिस्ता क्या देता।
जब सौ कौरव ललकार रहे हो,
अभिमन्यू तलवार उठा लेगा।

भगत तुम्हीं में जिन्दा है प्रियवर,
‘आन’ पड़ी तो सम्मुख आयेगा।
काल सा बढ़ता अरिदल चीरता,
शिखर पर तिरंगा लहरायेगा।

वतन हित में हर मूल्य तुच्छ लगा,
वो गर्वित मृत्यू से पुल्कित था।
हिन्द मे वीर कभी कम ना पडेगा,
वो भगत देश का फिर लौटेगा।

Realated Poem: “आतंक फैलाने से क्या होगा”

Read more interesting Hindi poems by Mr Bijendra Singh Bhandari exclusively at WEXT India Ventures, Click here

Bijender Singh Bhandari, First Hindi Blogger on WEXT.in Community is retired Govt. Employee born in 1952. He is having a Great Intrest in Writing Hindi Poems.

    Neo Mega Steel can meet your Infrastructural Needs

    Previous article

    Latest Startup News from 04 July to 10 July 2020

    Next article

    You may also like

    5 1 vote
    Article Rating
    Subscribe
    Notify of
    guest
    0 Comments
    Inline Feedbacks
    View all comments

    More in Hindi