उलझने-1-deepti-singh
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कभी इतनी बारिश नहीं हुई, आज पता नहीं ऐसा क्या हो गया। आज कैसे भी टाइम पर ऑफ़िस पहुँच जाऊँ।सब कुछ आज ही होना था। ये बारिश, प्रेज़ेंटेशन और बॉस का हेड ऑफ़िस से लोगों का ऑफ़िस में आना। ऑटो वाले भी लगता है, सब कही छुट्टी पर चले गए है। सलोनी एक चाय वाले की दुकान पर खड़े हो ख़ुद को बारिश से बचाते हुए, मन ही मन सब को कोस रही है। भैया एक चाय बना दीजिए शक्कर थोड़ा ज़्यादा कर दीजिएगा।सलोनी शक्कर ज़्यादा सुनकर अजीब ढंग से देखती है। ना कोई ऑटो ना कोई बस, नेटवर्क भी नहीं है। सब कुछ आज ही हो रहा है। मैडम कुछ परेशानी है, क्या? सलोनी उसकी तरफ़ देखती है, पूरा भीगा हुआ, लम्बा और गठिला से शरीर वाला लड़का। उसको देखकर सलोनी ने सोचा कि शायद कोई कॉलेज का लड़का है।जोकी अभी चाय में ज़्यादा शक्कर की माँग कर रहा था। सलोनी उसे देखकर कोई जवाब नहीं दिया।क़रीब एक घंटे इंतज़ार करने के बाद बारिश थोड़ी धीमी हुई तो सलोनी वहाँ से आगे जाना ही बेहतर समझा। थोड़ा दूर चलने पर उसे एक ऑटो मिल गया। ऑफ़िस पहुँचते ही रिसेप्शन पर सलोनी आज इतना लेट कैसे हो गयी। बॉस आ गए क्या सलोनी ने पूछा…..नहीं अभी तक नहीं आए। बच गयी….इतना कहकर सलोनी जल्दी से अपने वर्क स्टेशन पर पहुँचकर प्रेज़ेंटेशन की तैयारियों में लग गयी।

कुछ समय बाद सलोनी को पता चला की आज बॉस नहीं आएँगे तो प्रेज़ेंटेशन हेड ऑफ़िस से आए वी॰पी॰ के साथ देनी होगी। क्योंकि वो प्रेज़ेंटेशन के लिए उसके पास एक रात का वक़्त था और लेट हो जाने की वजह से वो उसे किसी के साथ डिस्कस भी नहीं कर पायी थी। इसलिए उसने सोचा की क्यों ना वी॰पी॰ को ही पहले प्रेज़ेंटेशन दिखा दी जाए अगर कोई ज़रूरी चेंजेज़ होंगे तो वो अभी कर लेगी। सलोनी वी॰पी॰ के कैबिन में गयी लेकिन उसे वहाँ पर कोई नहीं दिखा। वो वापस जाने लगी। तभी सामने से उसने एक लड़के को आते देखा। पास आने पर ये तो वही लड़का है,जो चाय की दुकान पर था। वो काफ़ी हैन्सम लग रहा था। कपड़े भी अलग है। ये इस ऑफ़िस में क्या कर रहा है। सलोनी आगे बढ़कर उससे कुछ पूछे उससे पहले ही उसकी कॉलीग आवाज़ लगा लेती है। सलोनी वहाँ से चली जाती है।



थोड़े समय बाद ऑफ़िस बॉय आकर उसे बोलता है। वी॰पी॰ सर ने उसे बुलाया है। सलोनी अपने लैप्टॉप को लेकर वी॰पी॰ के कैबिन में पहुँचती है। May i come in Sir….Yes, Please….

वी॰पी॰ की कुर्सी दूसरी तरफ़ होने की वजह से सलोनी उनको ठीक से नाहीं देख पाती।

सलोनी वी॰पी॰ से- सर मैंने प्रेज़ेंटेशन रेडी कर दी है, अगर आप भी एक बार देख लेते है और मुझे बता देते क्लाइयंट से मीटिंग से पहले कोई चेंजेज़ करने होतों।

ओके मिस??? सर सलोनी…..

वी॰पी॰ जैसे ही पलटकर बैठते है….So, show your presentation Miss Saloni….

सलोनी वी॰पी॰ को देखकर चौंक जाती है।ये वहीं इंसान था…जिसे सलोनी जॉब से पहले इंटर्न्शिप के दौरान मिली थी। उनके बीच अच्छी ख़ासी दोस्ती हो गयी थी। या कहूँ दोस्ती से कुछ ज़्यादा हीथा लेकिन दोनों ने कभी कुछ नहीं कहा।

सलोनी क्या तुम ठीक हो?

जी सर……

तो आप यहाँ पर मैनेजर है….जी।

क्या मैं जान सकता हूँ, आप इस कम्पनी से कब से जुड़ी हुई हो।

सर….२ साल से।

सलोनी को हैरान थी कि उसने उसे अभी तक पहचाना नहीं था या फिर ना पहचाने का नाटक कर रहा है।

सलोनी….वैसे आप मुझे सर ना कहकर मेरा नाम ले सकती है। I’m nikhil singh….

Ok Nikhil….

वैसे प्रेज़ेंटेशन ठीक है सिर्फ़ कुछ minor changes करने है। मैं तुम्हें changes mail कर देता हूँ।

Ok Nikhil…

Than catch you in meeting….

सलोनी वहाँ से हैरान सी बाहर आती है। आख़िर वो मुझे कैसे भूल सकता है। क्या मेरी शक्ल बदल गयी है या वो मुझसे नाराज़ है। कुछ समझ नहीं आ रहा।

सलोनी अपनी डेस्क पर जाकर शांत बैठ जाती है, वो सब बातें याद करने लगती है। उस समय वो कैसा हुआ करता था। आज इतना क्यों बदल गया। हमारे बीच ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ था।जो मुझे भूल जाए।

उसे वो कुछ बातें याद आने लगती है। जो कभी उनके बीच हुआ करती थी।

सलोनी- तुम्हें मुझे सताना अच्छा लगता है, या मनाना। ख़ुद मिलने का वक़्त देते हो, ख़ुद ही लेट आते हो। अगर नाराज़ हो जाऊँ तो फिर नाराज़ होने की वजह भी मुझसे ही पूछते हो। तुम ऐसे क्यों हो?

निखिल- तुम्हें सताना मेरा हक़ है, तुम्हें मनाना मेरा तुमसे प्यार।ज़िन्दगी के इतने साल तुम्हारे बेगेर गुज़ार है, तुम्हारे ज़िन्दगी में आने का इंतज़ार किया है। अब तुम मेरा इंतज़ार नहीं कर सकती।मुझे तो तुम्हारे ग़ुस्से में भी प्यार दिखता है इसलिए शायद पता ही नहीं चलता कि तुम नाराज़ क्यों हुई हो।

सलोनी- तुम्हारी बातें ये बातें तुमसे दूर जाने नहीं देती और तुम्हारी ये आदतें तुम्हारे नज़दीक आने नहीं देती”

मैडम की आवाज़ से सलोनी अपने ख़्यालों से बाहर आती है….मैडम सर ने आपको कॉन्फ़्रेन्स रूम में बुलाया है, मीटिंग के लिए।

ठीक है, आती हूँ।

सलोनी को मीटिंग में निखिल के साथ वो लड़का भी दिखता है। जोकि उसे चाय वाले की दुकान पर मिला था।

निखिल- सलोनी ये राहुल है। हमारी कम्पनी के newly appoint AVP.

राहुल- Hi, Saloni…..

सलोनी- थोड़ी शर्मिंदा सा होते हुए। हाथ मिलाती है।

राहुल क्लाइयंट से मिलवाता है….हम मीटिंग स्टार्ट करे। वैसे ही आज काफ़ी लेट हो चुका। राहुल सलोनी को प्रेज़ेंटेशन स्टार्ट करने के लिए कहता है।

मीटिंग के बाद राहुल- well done, Saloni…बहुत अच्छा प्रेज़ेंटेशन था।

सलोनी का ध्यान निखिल पर होता है जो बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है।

सलोनी को निखिल का ये व्यवहार बहुत अजीब लगता है। हर कोई प्रेज़ेंटेशन की तारीफ़ करता है। लेकिन निखिल ने उसे एक शब्द नही कहा।

मीटिंग लेट शुरू होने की वजह से काफ़ी देर हो चुकी है…ये बारिश है कि आज रुकने का नाम नहीं ले रही।

सलोनी ऑफ़िस के बाहर खड़ी होती है। तभी साइड से एक कार रूकती है। राहुल कार से बाहर आता है….सलोनी आओ में तुम्हें ड्रॉप कर देता हूँ। सलोनी मना कर देती है। नहीं सर….मैं चली जाऊँगी।

राहुल- यार टेन्शन मत लो। मैं कोई ठरकी बॉस नहीं हूँ। रात बहुत हो चुकी है…वैसे भी बारिश है क्या पता ऑटो कब मिले। मैं तुम्हें ड्रॉप कर देता हूँ। अगर तुम्हें रास्ते में कोई ऑटो मिल जाए तोतुम चली जाना।

ठीक है…..?

सलोनी मौसम को चढ़ती हुई रात को देखते हुए हाँ कर देती है।

सलोनी रास्ते भर निखिल की सोच में डूबी रहती है…आख़िर कोई इतना कैसे बदल सकता है।

राहुल – सलोनी क्या सोच रही हो। मेरे सुबह वाले रूप के बारे में?

सलोनी- नहीं….बस ऐसे ही। इतनी बारिश कभी नहीं होती।

राहुल- अच्छा…हो सकता है। कुछ नयी कहानियाँ लिखने का मूड हो भगवान का इसलिए पुरानी लगी मिट्टी को धो रहे है। जिससे सब साफ़ दिखे।

क्या तुम्हें बारिश पसंद नहीं….?

सलोनी- पसंद है….बारिश में लोगों के चेहरे भीगे पर साफ़ नज़र आते है।

राहुल- हाँ…ये तो है। तुम्हें मेरे चेहरे में क्या साफ़ नज़र आया।

सलोनी- आप बहुत अच्छे है।

राहुल- मुझे लग रहा है, तुम बात करने के मूड में नहीं हो तभी ऐसे जवाब दे रही हो।

सलोनी- नहीं…..ऐसा कुछ नहीं। आज ज़्यादा ही काम का प्रेशर था तो सर में दर्द है।

राहुल- हम्म….तुम कुछ मत कहो।

बारिश वापस से शुरू हो जाती है….. ये ट्रैफ़िक? राहुल थोड़ा सा झिलझिलाते हुए।

सलोनी- ये दिल्ली है यहाँ अक्सर बारिश में यही हाल हो जाता है।

राहुल- और क्या क्या अलग है आपकी दिल्ली में।

सलोनी- वैसे तो बहुत कुछ, इसे जितना जानो उतना ही और जाने के लिए बाक़ी रहता है।

राहुल- हाँ, यहाँ तो लोग भी बहुत पेचीदा है। वैसे हमारे मुंबई में भी यही हाल है। तुम कभी मुंबई गयी हो।।

सलोनी- हाँ…. घूमने के लिए फ़्रेंड्ज़ के साथ गयी हूँ।

ट्रैफ़िक ओपन होता है…दोनों के बीच फिर शांति हो जाती है। राहुल कुछ बोले तभी सलोनी उसे कार रोकने के लिए कहती है।

राहुल- क्या हुआ?

सलोनी- ऑटो….. मैं यहाँ से चली जाऊँगी।

राहुल- क्या….तुम्हारा घर यहाँ कितना दूर है। मैं छोड़ देता हूँ। इतनी बारिश है।

सलोनी- नहीं…थोड़ा दूर है। मैं ऑटो से चली जाऊँगी।

सलोनी कार से उतरकर ऑटो की तरफ़ चलने लगती है। अचानक से वो पैर मुड़ जाने की वजह से गिर जाती है।

राहुल जोकि वहीं खड़ा सलोनी के ऑटो में बैठने का इंतज़ार कर रहा था। वो भाग कर जाता है।

सलोनी तुम ठीक हो। मैंने कहा था बहुत बारिश है। चलो मैं छोड़ देता हूँ। दोनों बारिश में पूरी तरह भीग जाते है।

राहुल सलोनी को कार में बैठाता है। क्या बहुत दर्द है….हम डॉक्टर के पास चले क्या? राहुल बहुत चिंता करते हुए सलोनी से पूछता है।

नहीं….आप मुझे बस घर तक ड्रॉप कर दीजिये। ठीक है।

थोड़ा आगे जाने पर सलोनी उसे कार वही रोकने के लिए कहती है। यहाँ से मैं चली जाऊँगी।

राहुल- सलोनी तुम्हें बहुत चोट लगी है। मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।

सलोनी- नहीं, मैं चली जाऊँगी।


बारिश की वजह से स्ट्रीट लाइट की रोशिनी बूँदो पर बिखरी हुई लग रही थी। सलोनी वहाँ से चल देती है। bye….

राहुल कार के पास खड़ा उसे देखता रहता है….चोट की वजह से सलोनी बहुत ही धीरे चल रही है।

राहुल बड़बड़ाता है…अजीब लड़की है, ज़िद्दी भी इतना दर्द है। फिर भी बताया नहीं…घर तक भी नहीं छोड़ने दिया।

सलोनी आगे जाकर पलट कर देखती है। वो धीमी रोशिनी बारिश की बूँद जो उसके चेहरे पर चमक रही थी। सलोनी उसे बेहद ख़ूबसूरत लगती है।

जाने उसे क्या होता है…वो भागते हुए सलोनी केपास पहुँचता है। सलोनी will you marry me????

सलोनी उसे बहुत अजीब तरीक़े से उसे देखती है।कोई ऐसे कैसे कह सकता है।

राहुल- मुझे बातें घुमाकर करना नहीं आता। मेरे दिल ने कहा और मैंने तुम्हें कह दिया।अगर पलटकर नहीं देखती तो शायद ना कहता।

प्यार तो तुम्हें सुबह चाय की दुकान पर बारिश की बूँदो के बीच खड़े देखकर ही हो गया था। तुम्हें क़रीब से देखने के लिए वहाँ आया था।

क़िस्मत तुम से मिलाना चाहती थी या कहूँ तुम मेरी क़िस्मत थी कि तुम मेरी ही कम्पनी में वापस मिल गयी।

मैं तुम्हें GF बनने के लिए प्रपोज़ नहीं करूँगा क्योंकि जब किसी को चाहना क्लीर है तो उसे अपना बनाने में देर करने में भरोसा नहीं करता मैं।

तुम आराम से सोचकर जवाब देना। मेरे बारे में ठीक से जाने के बाद ही हाँ करना।

सलोनी को समझ ही नहीं आता वो क्या कहे। जिस इंसान से वो कुछ घंटे पहले अजनबी सी मिली वो अचानक से उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा होने की बात कर रहा है।

मुझे तुम्हारे हाँ या ना का इंतज़ार रहेगा। राहुल ये कहकर वहाँ से चला जाता है।

सलोनी देखती है वो घर जाने के लिए मोड़ पर खड़ी है। जहाँ से दो रास्ते है।

कुछ ऐसा ही अभी उसकी जिंदल में हुआ। वो उस मोड़ पर है, जहाँ उसे समझ नहीं आ रहा वो क्या करे।

अभी तो वो ये भी नहीं समझ पाई कि निखिल वापस आया है या नहीं। उस पर राहुल का उसे प्रपोज़ करना।

“ज़िन्दगी में अक्सर ऐसे मोड़ आते है,जहाँ समझ नहीं आता आख़िर कौनसा रास्ता सही है। कुछ ऐसा ही सलोनी के साथ हो रहा है”

आगे की कहानी, आने वाले अगले Blog में पढ़ें।

A writer having expertise in writing Multiple Domains. An Enthusiastic writer with a passion for Reading and writing. A Dedicated Reader and Multi Dimension Writer in WEXT India Ventures. I'm creating highly informative content for WEXT India Ventures about Entrepreneurship and Shark Tank India.

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Anupama
Anupama
7 years ago

Nice?…waiting for the next blog

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